Monday, August 2, 2010

दो साध्वियाँ

मंदिर की छत पर
टहल रही हैं
दो साध्वियाँ
सफेद वस्त्र पहने हुए
अभी-अभी उतरी हों
जैसे आसमान से दो परियाँ
आपस में बतिया रही हैं
हँस भी रही हैं
पता नहीं किस बात पर
और फिर देखने लगती हैं
आसमान की तरफ
और एकदम खामोश हो जाती हैं
आसमान में तैरते हुए
बादल के टुकड़े भी
बड़े अजीब होते हैं
मन कल्पना करता है
और ये बादल
ठीक वैसे ही दिखने लगते हैं
छत पर टहलती हुई
ये साध्वियाँ
पता नहीं कौन-सा आकार
तराश रही हैं
कौन-सा गुम चेहरा
तलाश रही हैं इस वक्त
नीले आसमान को देखते हुए
जाने कौन-सी स्मृति
उनके जेहन में
चली आई है अचानक
अपनी माँ या बहन की ज़रीदार आसमानी साड़ी
छोटे भाई या पिता की कोई शर्ट
अपनी ही कोई आसमानी फ्रॉक
या फिर
नीली आँखों वाली
बचपन की वह गुड़िया
जिसकी शादी
लगभग रोज़ ही रचाई जाती थी
नीली आँखों वाली वह गुड़िया
शायद अब भी सुरक्षित रखी हो
घर की किसी अलमारी में
इस रंग के साथ जुड़ी हुई
ढेर स्मृतियों में से
पता नहीं
कौन-सी स्मृति
उनके साथ-साथ
टहल रही है
इस वक्त छत पर.