Friday, February 26, 2010

ईश्वर

सबने शामिल कर लिया है
तुम्हें
अपने-अपने ज़ेहाद में
और तुम्हें पता ही नहीं चला
यार
कैसे अंतर्यामी हो...!

2 comments:

नीरज श्रीवास्तव said...

सचमुच... नये ज़ेहादियों के मंसूबे ईश्वर पर भारी पड़ते नज़र आ रहे हैं... ईश्वर को शायद सचमुच खब़र नहीं होती... इनके मंसूबों पर... बेहतरीन रचना...

aarkay said...

मणि मोहन जी , बिलकुल ठीक कहा आपने, कुछ ऐसा भी :

"आज कल किसी को वो रोकता नहीं
चाहे कुछ भी कीजिये टोकता नहीं
हो रही है लूट मार, फट रहे हैं बम

आसमां पे है खुदा और ज़मीं पे हम ..........! "