Friday, May 21, 2010
खोटा सिक्का
एक दिन मित्रों ने घोषित कर दिया
ईश्वर को खोटा सिक्का
दूसरे ही दिन
दुश्मनों ने
उसे बाजार में चला दिया
घूमता रहा सिक्का बाज़ार में
और फिर लौटा एक दिन
मित्रों के पास
बदरंग और घिसा-पिटा
एकदम खोटे सिक्के की तरह
ईश्वर को खोटा सिक्का
दूसरे ही दिन
दुश्मनों ने
उसे बाजार में चला दिया
घूमता रहा सिक्का बाज़ार में
और फिर लौटा एक दिन
मित्रों के पास
बदरंग और घिसा-पिटा
एकदम खोटे सिक्के की तरह
Wednesday, May 19, 2010
खूबसूरत घर
एक ख़ूबसूरत घर है
घर के सामने
हरा-भरा लॉन है
कुछ दरख़्त हैं आस-पास
रंग-बिरंगे फूल हैं
क्यारियों में खिले हुए
एक ख़ूबसूरत घर है
कमरे की दीवार पर चिपके हुए
पोस्टर में
इस बार भी दिवाली पर
सम्हल कर पोतनी होगी दीवार
पिछली बार की तरह.
घर के सामने
हरा-भरा लॉन है
कुछ दरख़्त हैं आस-पास
रंग-बिरंगे फूल हैं
क्यारियों में खिले हुए
एक ख़ूबसूरत घर है
कमरे की दीवार पर चिपके हुए
पोस्टर में
इस बार भी दिवाली पर
सम्हल कर पोतनी होगी दीवार
पिछली बार की तरह.
Friday, May 14, 2010
बारिश - एक
एक दिन बारिश में
भीगते हुए जाना
घर का मतलब
घर नहीं होता होगा जिनके पास
वे क्या सोचते होंगे
बारिश के बारे में.
भीगते हुए जाना
घर का मतलब
घर नहीं होता होगा जिनके पास
वे क्या सोचते होंगे
बारिश के बारे में.
बारिश - दो
रेनकोट पहने हुए यह आदमी
बारिश को रोकने निकला है
हटाओ इसे सड़क से
बंद कर दो इसे
किसी मकान के भीतर
जब तबियत से बरस ले पानी
तब खोल देना-
दरवाज़े की कुंडी.
बारिश को रोकने निकला है
हटाओ इसे सड़क से
बंद कर दो इसे
किसी मकान के भीतर
जब तबियत से बरस ले पानी
तब खोल देना-
दरवाज़े की कुंडी.
Thursday, May 13, 2010
समझौता
रोज़ सुबह आता है दूधवाला
और पानी मिला दूध
जग में डालकर चला जाता है
रोज़ डाँटता हूँ उसे
धमकी देता हूँ दूध बंद देने की
मुस्कुराता है दूधवाला
और रोज़ की तरह
साइकिल की घंटी बजाते हुए
आगे निकल जाता है
रोज़ शुरु होता है दिन
इस छोटे-से
समझौते के साथ.
और पानी मिला दूध
जग में डालकर चला जाता है
रोज़ डाँटता हूँ उसे
धमकी देता हूँ दूध बंद देने की
मुस्कुराता है दूधवाला
और रोज़ की तरह
साइकिल की घंटी बजाते हुए
आगे निकल जाता है
रोज़ शुरु होता है दिन
इस छोटे-से
समझौते के साथ.
Tuesday, May 4, 2010
यात्रा के दौरान
इस बार
पूरे सफर के दौरान
मैने एक भी कविता नहीं लिखी
एक मासूम ज़िद्दी बच्चे ने
छीन ली मुझसे
मेरी खिड़की वाली सीट
और फिर मैं
पूरे रास्ते देखता रहा
उसकी आँखों में
नदी, पुल, पहाड़
और
भागते हुए पेड़ों के प्रतिबिंब.
पूरे सफर के दौरान
मैने एक भी कविता नहीं लिखी
एक मासूम ज़िद्दी बच्चे ने
छीन ली मुझसे
मेरी खिड़की वाली सीट
और फिर मैं
पूरे रास्ते देखता रहा
उसकी आँखों में
नदी, पुल, पहाड़
और
भागते हुए पेड़ों के प्रतिबिंब.
Saturday, May 1, 2010
घर : दो
अपने घर से
मीलों दूर
इस अजनबी शहर में
दस बाई बारह का
यह कमरा
कभी-कभी
रेल के डिब्बे में
तब्दील हो जाता है
आधी रात के बाद
और भागने लगता है
घर की तरफ़.
मीलों दूर
इस अजनबी शहर में
दस बाई बारह का
यह कमरा
कभी-कभी
रेल के डिब्बे में
तब्दील हो जाता है
आधी रात के बाद
और भागने लगता है
घर की तरफ़.
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