Monday, March 8, 2010

औरतें

धरती के बीचो-बीच
रोप दिया है
तुलसी का एक बिरवा
और परिक्रमा कर रही हैं औरतें
अपनी प्रार्थनाओं में
कामना कर रही हैं
घर की सुख-समृद्धि और शांति की
निर्जला व्रत कर रही हैं
प्रदोष कर रही हैं
दिवंगतों के लिए
ग्यारस कर रही हैं
धरती की खुशहाली के लिए
रतजगा कर रही हैं औरतें
एक कभी न खत्म होने वाली
दौलत है उनके पास
समुद्र हैं कामनाओं के
झरने हैं प्रार्थनाओं के
अथाह जल राशि है
पीपल, बरगद और तुलसी के लिए
चींटियों के लिए शक्कर है
चिड़ियों के लिए चावल के दाने हैं
रोटियाँ हैं गायों के लिए
भूखे देवताओं के लिए भोग है
ऊबे हुए देवताओं के लिए मंगलगान हैं
अंधकार में बैठे हुए देवताओं के लिए
जलते हुए दीप हैं उनके पास
सुख है दुःख के लिए
प्रायश्चित है
पापों के लिए
जन्म-जन्मांतरों के
ढेर सारे पुण्य हैं उनके पास
जो धरती के काम आते हैं
आड़े वक्त.

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