Saturday, May 1, 2010

घर : दो

अपने घर से
मीलों दूर
इस अजनबी शहर में
दस बाई बारह का
यह कमरा
कभी-कभी
रेल के डिब्बे में
तब्दील हो जाता है
आधी रात के बाद
और भागने लगता है
घर की तरफ़.

3 comments:

दिलीप said...

sahi sir ghar ki yaad dila di...

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

बहुत खूब ! रचना के अन्दर छुपे भावो को समझ सकता हूँ ! नंबर दो पढ़ा तो एक को पढने की अनायास इच्छा जाग गई !

Shekhar Kumawat said...

bahut khub


badhai is ke liye aap ko