Friday, July 2, 2010

बैक बेंचर्स

एकदम अलग होते हैं
वे बच्चे
जो बैठते हैं
कक्षा की अंतिम बेंच पर
एक अलग दुनिया होती है उनकी
जैसे विश्व मानचित्र पर
तीसरी दुनिया
खूब डाँटते हैं इन्हें अध्यापक
थोड़ा-बहुत प्यार भी करते हैं
इनसे प्रश्न पूछते हुए
शायद थोड़ा डरते भी हैं
क्योंकि प्रश्न ज्यादा होते हैं इनके पास
और उत्तर कम-
किसी प्रश्न का उत्तर न दे पायें
तो अहं को चोट नहीं पहुँचती
और बता दें
तो उपलब्धि हो जाती है
पीछे बैठे हुए
तमाम दोस्तों की
खूब गोल मारते हैं
हॉकी और फुटबॉल में
खूब गोल मारते हैं
कक्षाओं से
किताबों में किसी का जी नहीं लगता
और सब के सब
नाराज़ रहते हैं
अपने-अपने घरों से
न इन्हें सवालों से डर लगता है
न इम्तहानों से
अपने अध्यापकों से ज्यादा जानते हैं
पाठ्यक्रम की असली औकात
हर साल
हैरान होते हैं अध्यापक
और हर साल
पास हो जाते हैं
पीछे बैठने वाले
सब के सब बदमाश.

1 comment:

aarkay said...

इसीलिए इन्हें एम.बी .बी.एस यानि members of back-benchers society कहा जाता है. परन्तु ऐसा भी नहीं कि यह निखट्टू ही होते हैं .
कई बार जो फ्रंट बेन्चर्स से मिस हो जाता है उसे भी कैच कर लेते हैं