Friday, July 16, 2010

वैवाहिक विज्ञापन

कहानी की तरह होते हैं
लड़कियों के वैवाहिक विज्ञापन
कहानी की तरह होतें हैं इनमें चरित्र
रिटायर्ड बाप
नौकरी तलाशता भाई
प्रतियोगिता की तैयारी करती छोटी बहन
पूजा घर में बैठी हुई माँ
और दुबली-पतली साँवली-सी
एक उदास नायिका
कहानी की तरह
चलती रहती है ज़िंदगी
और कहानी की तरह ही
मोड़ आते हैं ज़िंदगी में
किसी दिन
किसी एक सुबह
आता है डाकिया
और कुछ चिठ्ठियाँ दे जाता है
चिठ्ठियाँ जिनके भीतर
बंद होती है हैवानियत
और जन्म चक्रों में बैठे हुए पापी ग्रह
काँपते हाथों से लिफाफा खोलते हैं पिता
दिल धड़कने लगता है माँ का
समाज शास्त्र की पुस्तक बंद कर देती है बहन
और खिड़की से बाहर
देखने लगती है नायिका
गली में घूमते हुए सुअर के बच्चों को
लिफाफा खुलते ही
घर में भर जाती है
एक अजीब सी घुटन, खामोशी
और सड़ांध मारती प्रतीक्षा.

2 comments:

कडुवासच said...

...बेहतरीन!!!

Udan Tashtari said...

यथार्थ चित्रण..बहुत उम्दा!