Thursday, July 29, 2010

सब्ज़ी मंडी के बहाने

इस मँहगाई के ज़माने में
कुछ चीजें
बहुत सस्ती बिक रही हैं
यदि खरीदने के गुर आते हों तुम्हें
मसलन सब्जी-
यदि वह फुटपाथ पर बिक रही हो
और तुम्हारे पैने नाखून
लौकियों के भाव पर उतारू हो जायें
ज़रा-सी पैनी निगाहें हो तुम्हारी
तो घर जाने की जल्दी में बैठी हुई
कोई भी बूढ़ी औरत
अपने टमाटरों का आखिरी ढेर
जबरन डाल देगी
तुम्हारे रंगीन थैले में
फुटपाथ पर बिकती हुई चीजों के बीच
खाली थैला लिए
निरपेक्ष भाव से
निकल कर तो देखो एक बार
तुम्हारे भाव करने की औकात से भी
कहीं कम भाव में
चीजें मिल जायेंगी तुम्हें
क्योंकि इस मंडी में
चीजों का बिकना
एक मजबूरी है
और खरीदना शातिरपन.

4 comments:

कडुवासच said...

...bahut sundar !!!

aarkay said...

जी हाँ मतलब तो लाभ उठाने से है फिर वह किसी की मजबूरी का ही क्यों न हो !

डॉ.मीनाक्षी स्वामी Meenakshi Swami said...

"इस मंडी में
चीजों का बिकना
एक मजबूरी है
और खरीदना शातिरपन."

यही कडवा सच है ।

Piyush Aggarwal said...

मोल भाव के उस्ताद मालूम पड़ते हैं आप. खूबसूरत लेख के लिए बधाई