Wednesday, April 14, 2010

कविता

धूप की तरह आओ
मेरे घर में
पानी की तरह
चू जाओ कहीं से भी
हवा की तरह
दरवाज़ा खटखटा कर आओ
पीले पत्तों की तरह
भरा जाओ घर में
सपने की तरह चली आओ
दबे पाँव नींद में
दुःख की तरह आओ
कभी न जाने के लिए
या खुशी की तरह
धमक जाओ अचानक
दिन भर के काम से निबट कर
रात
जिस तरह आती है पत्नी
इस तरह आओ
जाग रहा हूँ मैं
तुम्हारी प्रतीक्षा में
चाहे जिस तरह आओ.

1 comment:

Amitraghat said...

बेहतरीन........."