Monday, March 22, 2010

पानी : एक

जितनी ज़रुरत थी
दरख़्तों ने उतना ही लिया
पानी
परिन्दों ने भी प्यार से
सिर्फ उतना ही पिया पानी
किसी ने नहीं तोड़ा
धरती और आसमान का भरोसा
सिवाय हमारे.

1 comment:

Anonymous said...

excellent poem
prashant