Monday, March 22, 2010

बाज़ार : एक

पैर नहीं थकते
आँखें थक जाती हैं
इस बाज़ार में
बच्चे की तरह उँगली पकड़कर
साथ चलते हैं सपने
और फिर गुम जाते हैं
रंग-बिरंगी खुश्बूदार भीड़ में
मैं सपने तलाशता हूँ
इस बाज़ार में
और फिर-
पैर भी थक जाते हैं.

4 comments:

Anonymous said...

चिट्ठाजगत में पंजीकरण पर स्वागत है।

नियमित रहें
अच्छा लिखें अच्छा पढ़ें

बी एस पाबला

kshama said...

Dua karti hun,ki, aapko sapne hasil hon!

अजय कुमार said...

हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

manish badkas said...

कसा है खुदी ने खुदा की खुदाई पे क्या खूब तमाचा,
पूजता भी है और पूछता भी है के ये क्यूँ है और वो क्यूँ है...